गद्य साहित्य का इतिहास।प्रवृत्तियां एवं गद्य जी विद्याएं। और विकास क्रम।

हैलो नमस्कार दोस्तो ! कैसे हो आशा करता हु आप सभी ठीक होगे, स्वागत हे आप सभी का मेरी इस पोस्ट में आज हम जानेंगे अपने गद्य साहित्य के इतिहास में आखिर कर यह हे क्या गद्य साहित्य का इतिहास के यह गद्य साहित्य क्या है? आज में आप सभी तो गद्य साहित्य का इतिहास की संपूर्ण जानकर देने वाला हु हम गद्य साहित्य का इतिहास के बारे में अच्छे से चर्चा करेंगे तो बने रहे मेरे इस पोस्ट में ओर अगर आप के मन में कोई भी सवाल हो तो जरूर पूछे आप सा ही को अपने प्रश्न का उत्तर जरूर मिलेगा तो आइए अब हम गद्य साहित्य का इतिहास के बारे में चर्चा करे।

#. गद्य साहित्य का इतिहास (History of prose literature)

गद्य वह वाक्यबद्धय विचारात्मक रचना है, जिसमें हमारी चेष्टाएं,हमारी कल्पनाएं तथा हमारे मनोभाव और हमारी चिंतनशील मनःस्थितियां सरलतापूर्वक अभिव्यक्त की जा सकती है। वास्तव में आधुनिक युग गद्य साहित्य के विकाश का युग है। अभिव्यक्ति का माध्यम होने के कारण गद्य साहित्य अपनी विभिन्न विधाओं के माध्यम से वर्तमान युग में अत्यधिक लोकप्रिय होता जा रहा है।

##. गद्य साहित्य की प्रमुख एवं गौण विधाएं।

प्रमुख विधाएं।      गौण विधाएं

1. निबंध             1. रिपोर्ताज

2. नाटक             2. संस्मरण

3. कहानी           3. जीवनी

4. उपन्यास         4. रेखाचित्र

5. एकांकी           5. यात्रा वृतांत

6. आत्मकथा

7. आलोचना

8. गद्य काव्य

9. भेंटवार्ता

10. डायरी

11. पत्र साहित्य

12. लोक साहित्य

1. निबंध 

हिंदी गद्य साहित्य में निबंध एक महत्वपूर्ण विधा मानी गई है, हिंदी निबंध का आविर्भाव आधुनिक युग में ही हुआ है।निबंध को सामान्यतः चार भागों में बाटा गया है, जिनके नाम निम्नलिखित है- विचारात्मक, भावात्मक, वर्णनात्मक, विवरणात्मक। हिंदी साहित्य में निबंध के विकास को निम्न लिखित चार भागों में विभाजित किया गया है।

#1.1 भारतेंदु युग (1850-1900)

  • भारतेंदु युग सन् 1850 से 1900 तक रहा।
  • भारतेंदु युग की प्रमुख प्रवृत्तियां ( विशेषताएं)
  • – 

1. लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग किया गया है।

2. प्रायः व्यंग्यात्मक शैली के सहारे कटु सत्य का वर्णन किया गया है ।

3. कहावतों और मुहावरों का अधिक प्रयोग किया गया है।

4. इन निबंधों में ज्ञानवर्धन और सहानुभूति दोनों विद्यमान है।

5. इतिहास, धर्म, समाज, राजनीति, आलोचना , आदि विषयों पर लिखा गया है।

6. इस युग मद राजनीति और समाज सुधार के निबन्ध लिखे गए है

  • भारतेंदु युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं।

निबंधकार।                                 निबंध

1. भारतेंदु हरिश्चंद्र              ईश्वर बड़ा विलक्षण है, एक अद्भुद                                         अपूर्व स्वप्न

2. बालकृष्ण भट्ट।             बातचीत, चंद्रोदय।

3. बालमुकुंद गुप्त।            शिवशंभू का चिठ्ठा।

4. प्रताप नारायण मिश्र।        परीक्षा, वृद्ध, दांत

#1.2 द्विवेदी युग (1900-1920)

  • द्विवेदी युग सन् 1900 से 1920 तक रहा।

 परिचय – इस युग का प्रारंभ महावीर प्रसाद द्विवेदी ने “सरस्वती” पत्रिका के संपादक के रूप में किया। द्विवेदी युग के निबंधकारों ने विचार प्रधान निबंध लिखे । ये निबंध मौलिकता लिए हुए नवीन विषयों पर थे और गंभीर निबंधों की कोटि में आते है।

  • द्विवेदी युग के प्रमुख कवि और उनकी प्रमुख रचनाएं।

निबंधकार                               निबंध 

1. महावीर प्रसाद द्विवेदी।          साहित्य की महत्ता ।

2. बाबू श्याम सुंदर दास।           समाज और साहित्य।

3. सरदार पूरनसिंह।               कन्यादान , सच्ची बरता।

4. चंद्रधर शर्मा गुलेरी।            कछुआ धर्म।

#1.3 शुक्ल युग (1920- 1940)

  • शुक्ल युग सन् 1920 से 1940 तक रहा।

परिचय- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के नाम पर यह युग शुक्ल युग कहलाता है। गद्य के क्षेत्र में निबंध की विधा में सबसे अधिक समृद्धि शुक्लाजी ने ही की।

इस युग में साहित्य, संस्कृति, इतिहास जैसे गंभीर विषयों पर प्रचुर संख्या में उच्चकोटी के निबंधों की रचना हुई।इन निबंधों की भाषा गंभीर और क्लिष्ट है तथा इस में तत्सम शब्दों का प्रयोग भी किया गया है।

  • शुक्ल युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं। 

।        निबंधकार।                         निबंध 

1. डॉ. रघुवीर सिंह                  ताज , फतेहपुर सीकरी।

2. आचार्य रामचंद्र शुक्ल।          उत्साह,भय।

3. बाबू गुलाबराय।                 मेरी असफलताएं।

4. शांतिप्रिय द्विवेदी              व्रत और विकास, कवि और काव्य।

#1.4 शुक्लोत्तर युग ( 1940 से वर्तमान तक)

इस युग के निबंधकारों में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का स्थान प्रमुख रहा है।

  • प्रमुख प्रवृत्तियां (विशेषताएं):  

1. भावात्मक एवं आत्मपरक  निबंध की रचना की गई ।

2. विषय वस्तु में विविधता को अपनाया गया है।

3. विचारात्मक ,भावात्मक एवं समीक्षात्मक शैली का प्रयोग किया गया हैं।

4. इसमें चिंतन की गहराई और विचारों की संघनता मिलती है।

  • शुक्लोत्तर युग के प्रमुख कवि और उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं।

निबंधकार।                               निबंध

1. डॉ. नागेंद्र।                  आलोचना की आस्था

2. हजारी प्रसाद द्विवेदी।       अशोक के फूल, विचार और विरक्त

3. रामविलास शर्मा।             प्रगति और परंपरा

4. अमृतराय।                    सहचितन।

2. नाटक

नाटक एक प्रमुख दृश्य काव्य है। यह एक ऐसी अभिनयपरक विधा है, मानव के निवान का संपूर्ण रोचक वर्णन होता है।नाटक के विकास क्रम को निम्न रूप में स्वीकार किया गया है।

1. भारतेंदु कल।    सन् 1837 ई. से 1904 ई. तक

2. संधि काल।      सन् 1904 ई. से 1915 ई.तक

3. प्रसादकाल।      सन् 1915 ई. से 1933 ई. तक

4. वर्तमान काल।     सन् 1933 ई. से वर्तमान तक

  • नाटक के प्रमुख तत्व:  1.कथावस्तु, 2. पात्र एवं चरित्र चित्रण ,3.संवाद या कथोपकथन , 4. भाषा शैली , 5. देशकाल एवं वातावरण, 6.उद्देश्य, 7. संकलंत्रय 8. अभिनेयता  आदि।
  • भारतेंदु के कुछ मौलिक नाटक: 1. अंधेर नगरी 2. भारत दुर्दशा 3. चंद्रावली 4. वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति  5. नीलदेवी 6. प्रेमजोगिनी।

 

  • नाटक विधा की प्रमुख प्रवृत्तियां (विशेषताएं):

1. नाटक में अंकों की संख्या अधिक होती है।

2. नाटक में आधिकारिक कथावस्तु के साथ-साथ अनेक प्रासंगिक कथाएं होती है।

3. नाटक दृश्य काव्य का बृहद रूप होता है।

4. नाटक में प्रमुख कथाओं के साथ गौण कथाएं भी जुड़ी रहती है।

  • नाटक विधा के प्रमुख नाटककार और  कुछ प्रमुख नाटक। 

प्रमुख नाटककार                              प्रमुख नाटक

1. भारतेंदु हरिश्चंद्र                          प्रेम जोगिनी, विद्या सुंदर।

2. जयशंकर प्रसाद                        स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त।

3. विष्णु प्रभाकर                          डाक्टर, टूटते परिवेश।

4. मोहन राकेश।                           लहरों के राजहंस, आधे-                                                    अधूरे।

5. उदयशंकर भट्ट।                         मुक्ति पथ , नया समाज।

3. कहानी

कहानी का शाब्दिक अर्थ होता है “कहना” जो कुछ भी कहा जाए उसे कहानी कहते है।परंतु विशिष्ट अर्थ से किसी घटना का वर्णन कहानी कहलाता है।

  • कहानी के प्रमुख लक्षण जैसे -1. गद्य में चरित होना। 2. मनोरंजन होना। 3. अंत में किसी चमत्कारपूर्ण घटना की योजना।

 

  • तत्वों के आधार पर कहानी के प्रमुख भेद– 1. घटना प्रधान 2. वातावरण प्रधान 3. चरित्र प्रधान 4. भाव- प्रधान।

 

  •  कहानी के प्रमुख तत्व – 1. कथावस्तु, 2. पात्र एवं चरित्र चित्रण ,3.संवाद  4. भाषा शैली , 5. देशकाल एवं वातावरण, 6.उद्देश्य।

 

  • कहानी विधा की प्रमुख प्रवृत्तियां ( विशेषताएं):

1. कहानी गद्य की कथात्मक विधा है।

2. कहानी के तत्वों का उचित समायोजन।

3. कहानी का लघु आकार – एक बैठक में समाप्त होने वाला रूप।

4. कहानी का अभिनय नहीं किया जा सकता है , कहानी सिर्फ पठनीय होती है।

5. कहानी में केवल श्रव्य गुण होता है।

  •    कहानी विधा के प्रमुख कहानीकारक और प्रमुख कहानी।

       कहानीकारक                           कहानी

1. प्रेमचंद्र                               प्रेम परमेश्वर, खिलाड़ी।

2.जयशंकर प्रसाद                     पुरस्कार, आधी।

3. मन्नू भंडारी                          सजा, एक प्लेट शैवाल।

4. यशपाल                              परदा, फूलों का कुर्ता।

5.अज्ञेय                                  रोज, गैंग्रीन।

4. उपन्यास

उपन्यास शब्द दो शब्दों का बना होता है, ‘उप’+ न्यास  जिसका अर्थ होता है – “पास रखा हुआ”। उपन्यास गद्य की एक महत्वपूर्ण विधा मानी गई है। उपन्यास के अंतर्गत वास्तविक जीवन के पात्रों और कार्यों का चित्रण किया गया है।

उपन्यास के प्रमुख तत्व – 1. कथावस्तु, 2. पात्र या चरित्र चित्रण 3. संवाद 4. देशकाल परिस्थितियां 5. शैली 6. उद्देश्य।

शैली की दृष्टि से उपन्यास के भेद – 1. आत्मकथात्मक शैली 2. कथात्मक शैली 3. पत्र शैली 4. डायरी शैली।

हिंदी उपन्यासों के विकास में तीन लेखकों को श्रेय है 1.देवकीनंदन खत्री 2. गोपालराम गहमरी 3. किशोरी लाल गोस्वामी।  प्रेमचंद जी का नाम “उपन्यास सम्राट” के रूप में जाना जाता है।

  • उपन्यास विधा के प्रमुख उपन्यासकारक और उनके प्रमुख उपन्यास।

          उपन्यासकारक                        उपन्यास 

1. प्रेमचंद्र                              गोदान, गबन, निर्मला।

2. अज्ञेय                           नदी के द्वीप, शेखर एक जीवनी।

3. यशपाल                        झूठा सच, दादा कामरेड।

4. नागार्जुन                      दुःख मोचन, इमारतिया।

5. जैनेंद्र कुमार                 कल्याण, परख, त्यागपत्र।

5. एकांकी

एकांकी एक अंक की वह दृश्य विधा है, जिसमें एक कथा तथा एक उद्देश को कुछ पात्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता था।

परिभाषा: डॉ. राजकुमार वर्मा के अनुसार : एकांकी में एक ऐसी घटना रहती है । जिसका  जिज्ञासपूर्व एवं कैतुहलमय नाटकीय शैली में चरम विकास होकर अंत होता है।

  • एकांकी के प्रमुख तत्व– 1. कथावस्तु, 2. पात्र एवं चरित्र चित्रण ,3.संकलन त्रय  4. द्वंद्व संघर्ष , 5. संवाद  6. भाषा शैली 7. अभिनेता आदि।

हिंदी एकांकी का आरंभ भारतेंदू युग से होता है, द्विवेदी युग में हिंदी एकांशियों पर पाश्चात्य प्रभाव पढ़ने लगा। इसका प्रमुख उद्देश्य था समाज सुधार।

  • एकांकी के प्रमुख एकांकीकारक और उनकी कुछ प्रमुख एकांकी।

एकांकीकारक।                              एकांकियां 

1. भारतेंदु                               अंधेर नगरी।

2. बालकृष्ण भट्टू।                     शिक्षादान।

3. जगदीश चन्द माथुर                मेरी बांसुरी, भोर का तारा

4. राधाचरण गोस्वामी                भारत माता , अमर सिंग राठौर

5. डॉ. रामकुमार वर्मा              दीपदान, रेशमी टाई।

  •  निष्कर्ष –

आज हम सब ने जाना हे गद्य साहित्य का इतिहास के बारे में जिसमें हमने अभी सिर्फ प्रमुख विधाओं का वर्णन किया है तो सभी ने देखा ही होगा कि गद्य साहित्य को  निम्न लिखित 5 भावी बता गया है और जिसमें से  प्रथम निबंध को भी 4 भागों में बाटा गया हे इस पोस्ट में सभी विधाओं के बारे में संपूर्ण जानकारी दी गई है एवं सभी विधाओं के प्रमुख कवियों की नाम दिए गए हे ओर प्रमुख विधाओं के नाम भी दिए गए है जिस को पढ़ कर आप सभी को बहुत आसानी होंगी गद्य साहित्य का इतिहास के बारे में जानने में आशा करता हु कि आप सभी को मेरी जानकारी अच्छी लगी होगी अगर आप के मन में कोई सवाल हो तो जरूर पूछे और नई जानकारी के लिए भी बने रहे मेरी इसी  website पर और जानकारी के लिए मुझे follow जरूर करे धन्यवाद!

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